Monika garg

Add To collaction

लेखनी कहानी -06-Sep-2022# क्या यही प्यार है # उपन्यास लेखन प्रतियोगिता# भाग(5))

गतांक से आगे:-

नरेंद्र सपने मे दब सा रहा था उसे सपने मे एक हास्टल दिखाई दे रहा था ।वह क्या देखता है वह अकेला एक गलियारे मे चला जा रहा था।वह शायद पानी की तलाश कर रहा था । दोनों ओर कमरों मे भूतहा शांति छाई हुई थी।तभी जोगिंदर को किसी कमरे से रोने की आवाज आई ।उसके कदम ठिठक गए।उसने गौर से देखा उसके कमरे का नंबर बारह था और रोने की आवाज तेरह नंबर कमरे से आ रही थी।वह जैसे ही उस कमरे के आगे आकर खड़ा हुआ।कमरा अपने आप खुल गया ।उसे ऐसे लग रहा था जैसे वो कमरा उसे अपनी ओर खींच रहा है ।वह धीरे धीरे उस कमरे के अंदर दाखिल हो गया ।कमरा अंदर से बहुत ही साफ सुथरा था।उसमे एक ओर एक बिस्तर लगा था ।नीचे मेट बिछा था और एक छोटी सी चौंकी पर एक सुराही रखी थी।उसका गला प्यास के मारे सूखता जा रहा था वह पानी तो पीना चाहता था पर उस लड़की के रोने की आवाज से विचलित भी हो रहा था ।तभी उस लड़की का रोना अचानक बंद हो गया और वह जैसे ही पीछे मुड़कर जोगिंदर को देखने की कोशिश करती है तभी जोगिंदर की आंखें खुल जाती है वह क्या देखता है उसका सारा शरीर पसीने से नहा चुका था सांसें बहुत तेजी से चल रही थी और हां वास्तव मे ही उसे प्यास लगी थी ।वह पलंग से उठा ओर सुराही से गटागट पानी पीने लगा ।जब उसकी प्यास बुझ गयी तो वह सोचने लगा कि बड़ा ही अजीब सपना आया मुझे शायद नींद में प्यास लगने के कारण ही मुझे ऐसा स्वप्न आया ।पर वह लड़की कौन थी जो उस कमरे मे मेरी ओर पीठ करके बैठी रो रही थी पलंग पर।कितनी अच्छी चमेली के फूलों की खुशबू आ रही थी।उस लड़की के पहनावे से तो नही लगता कि वह उस हास्टल मे ही रहती होगी।पर मुझे वो लड़की क्यों दिखाई दी जिसे मै जानता भी नही।

जोगिंदर यही सब सोच रहा था तो उसका ध्यान अपनी घड़ी की ओर गया शाम के चार बज गये थे ।पिता जी का भी घर आने का समय होने वाला था एक डेढ़ घंटे मे आ जाएंगे उनसे शहर जाने के लिए खर्चा जो लेना था ।वैसे तो जोगिंदर के बैंक खातें मे पैसे एडमिशन के लिए तो पहले ही डाल दिए थे उसके पिता जी ने। लेकिन कुछ नकद भी तो चाहिए गा। रोजमर्रा के खर्च के लिए।अभी पिताजी के आने मे टाइम था जोगिंदर ने सोचा क्यों न अपने बाल सखाओ को अलविदा कह आऊ। क्यों कि सुबह तो भागदौड़ मे समय नही लगेगा।

यह सोचकर वह तैयार होकर बाहर जाने लगा तो मां ने टोक दिया,"क्या बात बेटा? सारा दिन हो गया चक्करघिन्नी की तरह घुमते।दो घड़ी मां के पास बैठ कल तो तू शहर चला ही जाएगा।"

जोगिंदर मां की झप्पी डालकर बोला,"मां मै दस पंद्रह मिनट मे आता हूं ।जरा भोला,हरिया और सब को मिल आऊं सुबह तो समय नही लगेगा। फिर जी भर कर मां बेटा बातें करेंगे।"

यह कहकर जोगिंदर अपनी मां के लाड़ लडा कर गांव की ओर चल पड़ा।अभी थोड़ी ही दूर पहुंचा था कि सामने से भोला, हरिया और दोस्तों की मंडली आती दिखाई दी। उन्हें दूर से ही आता देखकर जोगिंदर मन ही मन सोचने लगा "क्या ऐसी दोस्ती मुझे शहर मे नसीब होगी ।मेरे लंगोटिया यार जो मेरे एक बार जरा सा कुछ कहने पर ही दौड़े चले आते है।"

वह सोचता रहा कि कैसे सारे तीज त्यौहार हम साथ साथ मनाते थे ।कैसे खेतों की मुंडेरो पर दौड़ लगाते थे।ये सब उसे बहुत याद आयेगा शहर मे।

भोला दौड़ कर जोगिंदर से लिपट गया और रोते हुए बोला ,"यार जाना जरूरी है ।यही रहकर अपनी जागीरदारी सम्भाल।"

भोला की बात सुनकर जोगिंदर का भी मन भर आया पर प्रत्यक्ष रूप से बोला,"क्यूं यार ऐसा क्या हो जाएगा क्या मै शहर से वापस लौट कर ही नही आऊंगा।तुम लोगों कोतो मेरी हिम्मत बंधानी चाहिए।"

हरिया भी हां में हां मिला कर बोला,"अरे जोगिंदर तुझे पता तो है ये कितना भावुक है ।तू जानता तो है ही।"

जोगिंदर दोनों के गले मिला और वे तीनों चौपाल मे बड के पेड़ के नीचे बैठ गये।

तभी हरिया बोला,"यार जोगिंदर हमे भूल ना जाना शहर जा कर ।"

जोगिंदर हंसते हुए बोला,"यारों कैसी बात करते हो कभी शरीर बिना सांसों के चल सकता है ।नही ना उसी तरह तुम लोग मेरी सांसे हो।"

ये कह कर तीनों एक बार फिर गले मिल गये एक दूसरे के।

जोगिंदर उन्हें कल का प्रोग्राम बता कर घर आ गया कि कल वह सात बजे शहर के लिए निकल जाएगा। रास्ते मे वह दोपहर को दिखे स्वप्न के विषय मे ही सोचता जा रहा था पता नहीं क्यों इतना सुकून था उस कमरे मे ।

और उस लड़की को वह जानता भी नही था फिर भी उसका रोना उससे सहन नही हो रहा था।एक बेचैनी सी महसूस कर रहा था वो । लेकिन जब घर आ गया तो उसने देखा पिता जी की बेंत दरवाजे पर रखी थी वो समझ गया पिता जी आ गये है घर ।वह आंगन मे आया तो देखा पिता जी खाट पर बैठे है और मां पंखा झल रही थी।वह जा कर खाट पर बैठ गया। जोगिंदर को देखकर उसके पिताजी बोले,"क्यों लला तैयारी हो गयी सभी ?"

जोगिंदर बोला,"जी पिताजी।"

"और हां जाने से पहले अपनी मां से कुछ नकदी साथ ले जाना ।अब बार बार बैंकों से निकलवाता फिरेगा क्या।"

जोगिंदर के पिताजी की आंखों के कोर गीले हो गये थे पर वो बाप थे रोना उनकी फितरत मे नही था पर मन तो अंदर से दुखी ही था कि इकलौता बेटा शहर पढ़ने जा रहा था पता नही उस माहौल में वह रम भी पायेगा या‌ नही।अभी छोटा ही तो था ।जाने को तो वै साथ जा रहे थे उसके पर उन्हें कुछ पता ही नहीं था शहर के विषय मे।

जोगिंदर की मां अ़दर कमरे मे गयी और वहां से एक पैसों की पोटली संदूक से निकाल कर लाई।और उसने कुछ नकदी जोगिंदर को दे दिया।और बोली,"बेटा और कुछ चाहिए तो बता देना और कुछ कमी रह गयी तो मै हरिया को सामान देकर शहर भेज दूंगी दे आये गा तुम्हें।"

"नही मां सब कुछ तो तुमने बांध दिया अब और क्या कमी रह गयी है।" जोगिंदर हंसते हुए बोला।

अभी सात बजे थे ।नौ बजे तक वह अपे माता पिता से बातें करता रहा फिर सुबह जल्दी उठना है ये कहकर अपने कमरे मे आ गया ।

पता नहीं जोगिंदर का मन बेचैन था ।वह याद नही करना चाहता था लेकिन दोपहर के सपने का ख्याल उसे बार बार आ रहा था।

बस सुबह सब काम सही से हो जाए ।और जिस बात का उसे बेसब्री से इंतजार था वो भी कल ही पता चलनी थी ।ये सोचता सोचता ना जाने उसे नींद ने कब अपने आगोश में ले लिया।

(क्रमशः)

   23
10 Comments

Kaushalya Rani

12-Sep-2022 03:38 PM

Very nice

Reply

Barsha🖤👑

12-Sep-2022 03:13 PM

Beautiful

Reply

Gunjan Kamal

11-Sep-2022 07:33 AM

शानदार भाग

Reply